क्या मेरे कर्मों का फल मेरे जीवनसाथी को भी भोगना पड़ेगा ?

प्रश्न : क्या मेरे कर्मों का फल मेरे जीवनसाथी को भी भोगना पड़ेगा ? मेरी वाइफ है उनको ना कैंसर है. वो यही पे ही है तो कभी कभी लगता है, क्या पिछले जनम के करम थे ? या इस जनम के करम थे ? क्या मेरे कुछ ऐसे करम थे. जो उनको ये कष्ट झेलना पड़ रहा है. “क्या मेरे कर्मों का फल मेरे जीवनसाथी को भी भोगना पड़ेगा ?”

श्रीहित प्रेमानन्द जी महाराज का उत्तर :  नहीं तुमको कष्ट झेलना पड़ रहा है. क्योंकि तुम्हारे भी कर्म ऐसे पीछे के थे, कि तुम्हारी पत्नी के शरीर में कैंसर हुआ. वो कैंसर से पीड़ित हो तुम उससे पीड़ित हो उसमें जो कैंसर आया उससे तुम पीड़ित हो. पैसा खर्चा होगा बार बार मृत्यू का चिंतन होगा.

तो यह करम के फ�ल स्वरुप है।

इस पर भक्त ने अपनी बात को रखने की कोसिस की, आज यहां पर आके पता चल गया कि बिना राधा राणी की कृपा से वृन्दावन के कोई दर्शन नहीं कर सकता. हमारा पहले से कोई ऐसा प्रोग्राम नहीं था की हम वृन्दावन जाकर राधा रानी की कृपा प्राप्त करेंगे।. मै अपनी धर्मपत्नी के साथ ही आकर राधा रानी और आपके दर्शन प्राप्त करने का सौभग्य प्राप्त हुआ. भगवन आपसे प्राथना है की अगर आप एक बार राधा-रानी से विनती करते की वृन्दावन धाम के पानी से अगर मेरी पत्नी की हेल्थ सुधर जाए, ऐसी कृपा कर दीजिये बस प्रभु ?

प्रेमानंद जी महाराज ने स्पष्ट किया कि उनका उद्देश्य व्यक्तिगत लाभ नहीं, बल्कि ईश्वरीय इच्छा को स्वीकार करना है। उन्होंने कहा, “हम यह शिक्षा देते हैं कि राधा-राधा का स्मरण करते हुए विधि-विधान के अनुसार जीवन के भोग को प्रेमपूर्वक स्वीकार करो। यह उपदेश स्वार्थपूर्ति के लिए नहीं, बल्कि आत्मसमर्पण और भक्ति के मार्ग को दर्शाने हेतु है। सच्चा सुख दिव्य अनुग्रह में निहित है।

“जो भी प्राप्त हो, उसे ईश्वर की कृपा समझो। भोगों से मोह न रखो, क्योंकि सांसारिक सुख क्षणभंगुर हैं। राधा-नाम का जप हृदय को शुद्ध करता है और परमात्मा से जोड़ता है। यही सनातन सत्य है, जिसे हमारी परंपरा सदैव प्रतिपादित करती आई है।”