आश्रम वाले महाराज जी को क्यों निकाल देते थे? #Shri hit premanand ji mahraj

आश्रम वाले महाराज जी को क्यों निकाल देते थे? #Shri hit premanand ji mahraj भक्त और भगवान के बीच का रिश्ता एक ऐसा रिश्ता है जिसमें प्रेम के सरोवर के सिवा कुछ नहीं होता एक भक्त के लिए भगवान जितने प्रिय होते हैं उससे कहीं ज्यादा भगवान के लिए एक भक्त प्रिय होता है | भारतवर्ष को यूं ही तपोभूमि नहीं कहा जाता इस धरती पर उन संतों ने जन्म लिया है जिन्हें भगवान ने स्वयं अपने गले लगाया है | वृंदावन, जो कि स्वयं भगवान की जन्म स्थली है इस धरती पर अनेकों अनेक महान संत हुए हैं आज हम उन्हीं में से एक महान संत के विषय में बात कर रहे हैं, जी हां हम बात कर रहे हैं प्रातः स्मरणीय परम पूज्य श्री प्रेमानंद जी महाराज जी के बारे में जिनकी गिनती आज राधा रानी के महानतम संत है | आश्रम वाले महाराज जी को क्यों निकाल देते थे ?

मित्रों जब हम किसी संत के जीवन को देखते हैं तो एक आम मनुष्य के मस्तिष्क में यही बात आती है कि इनका जीवन कितना सुंदर है बस अपने भक्तों के बीच में बैठ जाना प्रवचन करना और मौज से जीवन जीना पर परंतु हम इन महान पुरुषों के जीवन का वो समय नहीं देख पाते या इनके जीवन काल का वो समय जिसे बिताकर यह यहां तक पहुंचे हैं वो भी जब प्रभु की इन पर कृपा दृष्टि हुई मित्रों संत बनना कोई खेल नहीं है अपने जीवन का प्रत्येक क्षण सुख दुख सभी को प्रभु की लीला के अनुरूप चलाना पड़ता है एक ऐसे दुर्लभ संत जिनकी दोनों किडनी विगत 20 वर्षों से खराब हैं | जो दिन में मात्र एक गिलास पानी पीकर रहते हैं लेकिन ऐसी विकट परिस्थिति के बाद भी महाराज जी के चेहरे पर कोई शिकन नहीं आती महाराज जी कहते हैं कि ” उनकी एक किडनी का नाम राधा और दूसरी किडनी का नाम कृष्ण है ” तो जब राधा और कृष्ण दोनों साथ-साथ है तो फिर किस बात की चिंता है |

भक्त ने जब अपनी किडनी महाराज जी को देने की बात की तो प्रेमानंद महाराज जी ने क्या कहा

महाराज जी अक्सर राधा नाम में इतने विभोर हो जाते हैं कि उनके अशु रुक नहीं पाते उनके अनगिनत भक्त उनसे कई बार यह कह चुके हैं कि महाराज जी आप मेरी किडनी ले लीजिए | इस पर महाराज जी कहते हैं कि यह सब राधा कृपा है यह सब उन्होंने ही हमें प्रदान किया है हमें कोई कष्ट नहीं है यदि लाडली जू को इन किडनी हों से ही काम कराना होगा तो वो करवा लेंगी जो मच्छर को ब्रह्मा बना दे ब्रह्मा को मच्छर बना दे हम उस पावर से चलते हैं उसी को उसी को क अगर तुम्हें करवाना है अपनी सेवा तो बिजली दीजिए अन्यथा उनकी मर्जी महाराज जी वृंदावन में लोगों को जीवन जीने की ऐसी कला सिखाते हैं जिससे हम इस कलयुग के कलिकाल में अपनी आम दिनचर्या करते हुए भी भगवत भजन कर सके जो कि लाखों की संख्या में प्रवचन करने वाले भी नहीं सिखा पाते आज हम ऐसे ही एक महान संत के विषय में बात कर रहे हैं मैं आप सभी साधकों हरि भक्तों का अपने य blog में स्वागत करता हूं आप सभी को मेरा जय जय श्री हित हरिवंश मित्रों इस blog को एक प्रेरणा के रूप में पढ़ियेगा | आपको अद्भुत भक्ति और भगवत कृपा का अनुभव होगा अपनी अद्भुत वाणी और प्रेरणादायक विचारों के बल से महाराज जी आज बच्चों बुजुर्गों और युवा पीढ़ी की पहली पसंद बन चुके हैं उनकी वाणी में ऐसा दर्द है कि बस मन करता है कि ये बोलते रहे और हम सुनते रहे और यदि आप उनके समक्ष कुछ देर बैठ गए तो फिर आपको वह आनंद प्राप्त होगा उस आनंद की अनुभूति होगी जिसको शब्दों में पिरो पाना असंभव है |

महाराज जी क्यूँ अक्सर राधा नाम लेते हुए रोते हुए दिखाई देते हैं ? ” आश्रम वाले महाराज जी को क्यों निकाल देते थे ?”

महाराज जी अक्सर राधा नाम लेते हुए रोते हुए दिखाई देते हैं राधा राधा यह भक्त की भक्ति नहीं तो और क्या है जब मात्र 13 वर्ष की अवस्था में महाराज जी अपने घर से भगवत प्राप्ति हेतु निकले तो कैसे उन्होंने आज तक का सफर तय किया | जब महाराज जी अपने घर से निकले तो सबसे पहले उन्होंने बनारस के 80 घाटों को अपनी प्रथम भजन स्थली बनाया उसके बाद शिव कृपा से बनारस में ही रास लीला और चैतन्य लीला देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ उसके फल स्वरूप मन वृंदावन की ओर ऐसा मुड़ा कि वृंदावन आकर वृंदावन के ही हो गए |

वृंदावन आने के बाद महाराज जी का जीवन कठिनाइयों से भरा था | महाराज के जीवन की सबसे कठिन परीक्षा उनकी प्रतीक्षा कर रही थी प्रारंभ में जब महाराज जी वृंदावन आए तब उनकी बेश उषा वही थी जैसे कि वह बनारस के 80 घाटों पर रहा करते थे लाल वस्त्र और मस् पर त्रिकुंड महाराज जी प्रारंभ में वृंदावन के वातावरण से अपरिचित थे , अनजान थे वहां का कोई भी व्यक्ति उनको नहीं जानता था और ना ही वह किसी को जानते थे | बस महाराज जी एक ही परिचय साथ लेकर आए थे और वो था प्रिया प्रीतम का परिचय प्रारंभ में महाराज जी बिहारी जी के मंदिर जाया करते थे और वृंदावन परिक्रमा लगाया करते थे एक दिन बिहारी जी के मंदिर में गोस्वामी जी के कहने पर महाराज जी राधा वल्लभ जी के मंदिर भी गए और वहां राधा वल्लभ जी के दर्शन किए तो ऐसे रमे कि आज तक अपना जीवन प्रभु के चरणों में ही व्यतीत कर रहे हैं | महाराज जी को धीरे-धीरे वृंदावन से लगाव होने लगा और वही हो रहा था जो प्रभु चाहते थे बस नित्य सुबह शाम राधा वल्लभ जी के दर्शन , यमुना जी के दर्शन वृंदावन परिक्रमा और नाम जप यही उनकी दिनचर्या थी |

जब 10 वर्ष पहले महराज को पता चला की उनकी किडनी ख़राब हो गयी ! उसके बाद का महाराजी के जीवन की दशा, आश्रम वाले महाराज जी को क्यों निकाल देते थे ?

सब कुछ ठीक चल रहा था एक दिन उनकी तबीयत खराब हुई महाराज जी स्वयं बताते हैं कि आज से 10 वर्ष पहले मैं वही खा सकता ता था जो मांग कर लाता था यदि किसी दिन भिक्षा नहीं मिलती थी तो कुटिया में भूखे पड़ा रहना पड़ता था, और यमुना जल पीकर ही गुजारा करना पड़ता था | उस समय भी मेरी किडनीयां खराब थी वृंदावन के चार सज्जनों के घर ऐसे थे जहां से महीने भर की दवाई का खर्च आया करता था | तब जाकर महीने में 800 महीने की दवाई आया करती थी | मेरी दोनों किडनीयां फेल हैं डायलिसिस होता है लाखों रुपए का खर्चा आता है मांगने से कोई इतना पैसा आखिर कहां देता है | इतना पैसा कहां से आता है यह सब तो मेरी लाडली की कृपा है, आज सैकड़ों लोग मेरी सेवा में हैं सब व्यवस्था खुद ब खुद हो जाती है जब मैं अपने बल से सोचता था तो मांगने जाना पड़ता था और जब से मैंने अपने प्राण लाडली के चरणों में नुछावर कर दिए हैं और यह मान लिया है कि हम तो गरीब बाबा जी हैं हमारे पास क्या है ना एक रुपया है और ना ही एक आदमी तब से मेरी लाली जी ने सारी व्यवस्था अपने आप कर दी है | आश्रम वाले महाराज जी को क्यों निकाल देते थे ?

आश्रम वाले महाराजी को क्यों निकाल देते थे ?

“पहले मैं जिस किसी भी आश्रम में रुकता था तो जैसे ही आश्रम वालों को यह पता लगता था कि इसकी तो किडनी खराब है तो वह सोचते थे कि यदि यह यहां रहा तो दवाई कराना पड़ेगी, पैसा खर्च करना पड़ेगा,  इसकी सेवा करना पड़ेगी, तो वह यह बात पता लगते ही आश्रम से निकाल देते थे | और मैं भी यह समझ जाता था कि मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है |इसीलिए मेरे साथ ऐसा व्यवहार हो रहा है आज आप लोग जो कुछ भी देख रहे हो ना यह सब मेरी लाडली जी का है, मेरी लाडली की कृपा है |  इसी वृंदावन में कड़ाके की ठंड में गेहूं के बूरे सिल्कर मैंने पहने हैं, रातें गुजारी हैं, यह दशा थी मेरी कुछ नहीं था मेरे पास यदि ₹ की भी जरूरत होती थी तो किसी की तरफ देखना पड़ता था, मांगना पड़ता था, यदि आज भी मेरी यह स्थिति होती तो पढ़े पढ़े सड़ जाता कोई पूछने वाला तक ना होता यदि श्री जी ने यह सब व्यवस्था ना की होती तो यह सब कुछ नहीं होता आज यह सब कुछ उन्हीं की कृपा है आज सारी व्यवस्थाएं उन्हीं की कृपा से चलती हैं | कपड़े सारी व्यवस्थाएं कहां से हो जाती हैं श्री जी जाने आज आश्रम में सैकड़ों जवान बच्चे सेवा में हैं एक पानी पिलाता है, तो दूसरा मुंह पोचता है, तीसरा पंखा करता है यह सब कौन है यह सब हमारे प्रभु हैं हमारे प्रभु ही आए हैं | इन सभी रूपों में मुझे दुलार करने के लिए जिस बालक को कभी एक रोटी के लिए तरसना पड़ता था, जिसने अपने जीवन में इतने दुख उठाए हैं लेकिन कभी अपने भगवान को नहीं भूले | आज भगवान ने ही उसी बालक को इतना बड़ा बना दिया कि वह स्वयं ईश्वर का स्वरूप माना जाता है | यही तो उस प्रभु की कृपा है जो हम इंसान कभी नहीं समझ पाते |

जय जय श्री हित हरिवंश i