अरे आश्चर्य होता है। झूठ बोल के तुम सोच रहे हो हम संभाल लेंगे। नहीं नहीं झूठ तुम्हारा नाश कर रहा है। तुम्हें पता नहीं। जिस जिभ्या से नाम जप कर रहे हो अगर नाम का विशेष फल प्राप्त करना है। जल्दी फल प्राप्त करना है। आपको दुखों से बचना है। पाप भस्म करना है तो झूठ बोलना बंद कर दीजिए। क्या बिगड़ जाएगा आपका? सच्ची बोलने में क्या बिगड़ जाएगा? सच्ची बोलना शुरू करोगे हिम्मत नहीं रह जाएगी पाप करने की। यह जो पाप करने की तुम्हारी हिम्मत पड़ रही झूठ बोलने के कारण पड़ रही है। नहीं असत्य संपातक पुंजा सबसे बड़ा पाप झूठ बोलना। उससे क्या होता है? हर चीज हम छुपाना चाहते हैं। किससे? उस सर्वज्ञ परमात्मा से। गुरुदेव से। नहीं झूठ नहीं। नाम इसीलिए नहीं चल पा रहा। थोड़ी दिन नाम चलाएंगे छूट जाएगा क्योंकि आप झूठ बोलते हैं पापाचरण करते हैं। अगर नाम को चलाना है तो नारायण स्वामी जी कह रहे हैं पहली बात मौन का आश्रय लीजिए। कम बोलिए अधिकतर चुप रहना सीखिए। तभी नाम चला पाएंगे। जो कार्य कर रहे हैं आप उस पर ध्यान दें। उस कार्य को एकाग्रता पूर्वक करें। वाणी को मौन रखें। उस वाणी से धीरे-धीरे नाम उच्चारण करें। कम से कम 24 घंटे में चार घंटे मौन का तो सबको अभ्यास कर लेना चाहिए। 24 घंटे में चार घंटे मौन का तो ऐसे ऐसे बुद्धिमान वो कहेंगे हम छ घंटे मौन रहते हैं। कब? बोले जब सोते हैं तब। आप चार घंटे कह रहे हो हम छ घंटे मौन रहते हैं। 24 घंटे में हम छह घंटे मौन रहते हैं। बहुत बुद्धिमान है। बोले आप 4 घंटे कहते हो हम छह घंटे मौन रहते हैं तो कब आप मौन रहते? बोले जब सोते हैं तो छ घंटे सोते हैं। मौन ही रहते हैं उस समय। मौन जागृत की कह रहा हूं। चार घंटे का नारायण स्वामी के बहुत बड़े महापुरुष हुए। तुम चार घंटे मौन का अभ्यास करो। ऐसा निकालो दो घंटे दोद घंटे करके 24 घंटे में चार घंटे मौन उस समय हम किसी से बात नहीं करेंगे। नाम जप करेंगे। कार्य करो। कार्य करने के लिए मना नहीं कर रहे हैं। कम बोलो। आजकल लोग अपनी जीवनी शक्ति को बोलने के द्वारा बहुत नष्ट कर रहे हैं। व्यर्थ की बातें करते रहते हैं। चार आदमी चल रहे हो आप पीछे चलिएगा। सुनते बे मतलब की बातें नाम जप नहीं होगा वो डिलीट नहीं होंगी। वैसे ही बनी रहेंग। अगले जन्म के लिए तैयार हो रहा है। इसलिए नाम यदि सिद्ध करना है, नाम का फल लेना है, नाम का आनंद लेना है तो वृथा भाषण बंद करो। बेकार की बात बंद करो। जितना कम बोलने से काम चल जाए उतना। सामने वाले को बोलने दीजिए। आप बीच में हम नाम चल रहा है। जी नाम चल रहा है। जब कोई आवश्यक बात हुई पवित्र शब्द बोल दिया नहीं चुपचाप सुनो। उसको लग रहा है कि आप संभाषण करो। मान लो रिश्तेदार है, नातेदार है, मित्र अब आप व्यवहार में हैं। आप सीधे ये तो नहीं कह सकते हमसे बात मत करो। नहीं हां बात कीजिए लेकिन आप कम बोलिए। उसको बोलने दीजिए। आप नाम जप कीजिए। जरूरत भर बात कीजिए। बात में भगवान की चर्चा हो तो कोई बात नहीं। अगर प्रपंच की चर्चा है तो बचने की कोशिश कीजिए। अपने संबंधियों, अपने दोस्तों, अपने व्यवहारियों से व्यवहार, दोस्ती, संबंध शिथिल कीजिए। तभी नाम में प्रीति होगी। अगर ये अब हमारे दोस्त आ गए हैं तो फिर वो दोस्त छूट जाएगा नाम। अब बातें शुरू हो गई प्रपंच की। धन्य है ऐसी बुद्धि जो प्रियजनों से भी संभाषण केवल भगवत वाक्यों का अन्यथा नहीं। इसीलिए इस मार्ग को वरण करना बहुत कठिन है। एक ऐसा तुम्हारा निवास स्थान होना चाहिए अलग। जिसमें अपने रिश्तेदार, नातेदार, व्यवहारियों का प्रवेश ना हो। आपकी सैया अलग होनी चाहिए। अगर नाम जापक नाम सिद्ध करना चाहता है, नाम का फल लेना चाहता है, नाम निरंतर चलाना चाहता है, तो जिस आसन पर आप बैठते हैं, उसी में प्रपंची विषय सांसारिक वृत्ति वाले बैठेंगे तो भजन की वृत्ति नहीं बन पाएगी। एक ऐसा वैसे होते हैं घरों में बैठने वालों का अलग। लेकिन साधन कक्ष अलग होना चाहिए अपना। किसी का यदि प्रवेश ना हो तो आप देखेंगे कि आपके साधन के परमाणु आपको वहां बैठते ही तत्काल विक्षेप रहित करके भजन में लगा देंगे। अगर घर में ऐसा कुछ ना हो तो एक आसन अपना अकेला रखिए। जिस पर आप शयन करें वो आसन केवल आपका ही होना चाहिए। अगर वो सार्वजनिक बैठना के लिए ही है। ऐसी व्यवस्था नहीं तो आसन समेट कर अपना अलग रख दीजिए और दूसरे आसनों पर बैठा लिए। फिर वो आसन हटाकर जब आप शयन करें तो आपका आसन होना चाहिए। इसका बहुत बड़ा प्रभाव पड़ेगा। कोई भी ऐसा दृश्य या पुस्तक ना पढ़ें जो वासनात्मक हो और प्रभु के नाम से आपको विमुख कर दे। अखबार आदि समाचार आदि यह हमारे चिंतन को नष्ट करते हैं। अगर नाम जप करना है निरंतर नाम स्मृति बैठलनी है। एक घटना कई मिनट तक विक्षेप देती है। ऐसा हुआ कैसे लोग हैं? अब उसमें तो समाचार ही हो रहे हैं। सैकड़ों बातें हो रही हैं। पेपर है तो सैकड़ों बातें लिखी है। क्या-क्या? अब वो सब दिमाग में भर गई। इतना व्यसन है किसी किसी को पेपर पढ़ने का, समाचार पत्र पढ़ने का कि सुबह होते ही वो विरह में रहते हैं कि पेपर आ जाए। आया नहीं। और मिला तो ऐसी एकाग्रता से पढ़ते हैं जैसे वेदांत चिंतन करने वाला वेदांत चिंतन चश्मा लगा चाय रखी ठंडी हो रही उससे मत बीच-बीच में चाय और चश्मा से और पूरे दिमाग में वही अब क्या करेगा? जो पढ़ा है उसका चिंतन बनेगा वही बोला जाएगा। अब जहां चार मिले तो तुम्हें पता है उत्तर प्रदेश में यह हुआ मध्य प्रदेश में ये हुआ चर्चा दिमाग नाम जापक पूज्य श्री नारायण स्वामी कह रहे अखबार पढ़ना दुनिया भर के प्रपंच की जिसमें बातें हैं ऐसे समाचार ऐसे टेलीविजन देखना यह तुम्हारे हृदय में नाम नहीं चलने देंगे तुम्हारी इस पूर्णा को गंदी कर देंगे बेकार का वक्त खराब होगा इसलिए अगर अगर आपको पढ़ना ही है तो धार्मिक ग्रंथों को पढ़िए। अपने इष्ट संबंधी ग्रंथों को पढ़िए। नाम जपने के लिए किसी को कभी वचन ना दें। पांचवा बहुत बहुत पॉइंट की बात करें। यदि आपने किसी को वचन दे दिया और पूरा नहीं किया तो भजन का फल वहां जाएगा। ध्यान रखना। यही हमसे सब त्रुटियां होती रहती है अपने लोगों से। जाओ आज के बाद वचन दे दिया हम ऐसा नहीं करेंगे नहीं करेंगे चाहे मर जाए और अपने लोग ऐसे फिसड्डी है कि शाम के वचन देते हैं और सुबह फिसल जाते हैं। दो चार दिन बहुत बोध चला फिर फिसल जाते हैं। बोले कसम से आज से ऐसा नहीं करेंगे। तो आप इसको खिलवाड़ ना समझे। आपके सुकृत नष्ट हो रहे हैं। वासना आपके सुकृतों को नष्ट कर रही है। दूसरा जैसे आपने किसी से कहा कि मैं शाम के 5:00 बजे आ जाऊंगा तो 5:00 बजने में पांच मिनट कम होने पर आपको पहुंच जाना चाहिए। पांच मिनट ओवर होने पर नहीं। उसके पहले ही आपको यह संतों के जीवन में देखा गया है। समय का बहुत बड़ा जीवन में अस्तित्व है। अगर आप किसी को समय दें फिर उसमें प्रमाद स्थिति नहीं होनी चाहिए। पांच मिनट पहले पहुंचिए। समय दिया है किसी को तो पांच मिनट पहले उसको इंतजार ना करना पड़े। रात को सोते समय नाम जापक उपासक विचार करें मेरा नाम किन-किन कार्यों में छूटा। मेरे से कौन-कौन सा पाप हुआ? मैंने कौन सी आज गलती की जो नहीं करना चाहिए और उसे डायरी में नोट करें। नारायण स्वामी कह रहे हैं। दूसरे दिन सावधानी पूर्वक वो गलतियां ना होने पावे जो हमने आज की। जब उपासक सत्य बोलना स्वीकार करता है तो उसके हृदय में डर जागृत हो जाता है। ध्यान रखना डर यह माया के द्वारा प्रेरित है। अगर व्यापार में सत्य बोलेंगे तो पैसा अधिक नहीं आएगा। अगर हम सत्य बोल दिए तो डांट लगेगी। अगर हम सत्य बोल दिए तो सब लोग जान जाएंगे मैं ऐसा गंदा हूं। सच्ची मानिए सत्य बोलने का नियम ले लीजिए। आप निष्पाप हो जाएंगे। आप महात्मा बन जाएंगे अंदर से कोई भी पापाचरण आपके जीवन में नहीं रह जाएगा। भगवान का नाम सत्य है। उस नाम को चलाने के लिए झूठ बोलने वाला नाम को कैसे चला सकता है? सत्य बोलने से यदि तुम्हारा नुकसान हो रहा है तो तुम सह जाइएगा। नारायण स्वामी कह रहे उससे बड़ा लाभ आपको श्री भगवान प्रदान करेंगे। आप सत्य बोलिए। आजकल भगवान पर विश्वास नहीं इसलिए झूठ पर विश्वास है। कलयुग की ऐसी प्रेरणा है कि सब झूठ बोलने लगे हैं। कोई डरता ही नहीं झूठ बोलने में। पूरा का पूरा जैसे नहीं कहते कुछ तो सत्य होगा। ऐसे ऐसे महानुभाव है कि 100 परसेंट झूठ बोल जाते हैं। 100 परसेंट धन्य है मोबाइल जो झूठ बुलाने में बहुत प्रवीण है। बहुत प्रवीण है। अरे भाई हम नहीं मिल सकते। आज हमारा मन नहीं है। खत्म खेल हो गया। सत्य बात है। नहीं मिल सकते आपसे। मत उठाओ फोन। अगर तुम्हें झूठे ही बोलना है तो फोन क्यों उठाओ? नहीं बोलेंगे। नहीं उठाएंगे तो समझ जाएगा कि उनकी रुचि नहीं। ये झूठ क्यों बोलना? सत्य बोलो। झूठ से यदि आप बच गए तो आपके जिभ्या पे नाम निरंतर चलने लगेगा। ये झूठ ही नाम नहीं चलने दे रहा। असत्य आचरण छुपाने की वृत्ति असत्य भाषण ये नाम में प्रीति नहीं किसी को भी फुसलाने के लिए झूठ मत बोलिए। सत्य बोलने का अभ्यास कर लिए तो पापी जीव भी महात्मा बन जाए। सत्य आवश्यक है। एक बड़े कागज पर ऐसी जगह लिख के रख लो जहां तुम उठते बैठते देखते हो कि मुझे सत्य बोलने का नियम लेना है। झूठ नहीं बोलना है। सत्य साधन कर लो। फिर देखो नाम कैसे चलता है। तपस्या बड़े-बड़े पुण्य बड़े-बड़े तीर्थ स्नान उतना पवित्र नहीं करेंगे जितना सत्य बोलने से होगा। पर बहुत कठिन है इस समय सत्य बोलना। मतलब बात पर असत्य का ही बर्ताव हो रहा है। असत्य का अच्छा ये कोई संसारी आदमी में नहीं कुछ ऐसे होंगे जो सत्य की वार्ता करते हैं। नहीं प्राय क्या जाता है? झूठ बोलने में बोल दिया और सामने वाला राजी हो गया। हम निकल गए। लेकिन सत्य ना होने के कारण आप में सत्य आचरण सत्य स्वरूप भगवान का नाम भगवान को कहा गया सत्यनारायण वो नाम नहीं चलेगा भजन करने का पहला साधन है सत्य बोलना जबान से सत्य बोला जाए और भजन की संख्या प्रारंभ में जरूर ले लेनी चाहिए यदि 10 माला का नियम लिया 20 माला का नियम लिया तो उसे निर्वाह करो। जैसे यहां शरणागति मंत्र मिलता है तो 11 माला प्रारंभ में दी जाती है कि आपको करना ही है। ज्यादा हो जाए वो ठीक 11 से कम वो कभी जीवन में नहीं अपने जीवन में गुरु आज्ञा 11 माला तो करनी है। हर समय करना है। पर ये मन थोड़े दिन तो नियम में चलेगा इसके बाद छोड़ देगा। दीक्षा तब लेनी चाहिए जब गुरु आज्ञा पर चलने की हिम्मत हो। नहीं तो ऐसे ही नाम जपो करो। जब नियम मिल गया 11 माला तो चाहे प्राण निकल जाए हमको 11 माला पूरे करने हैं प्राण निकलने तक गुरु आज्ञा का पालन करना है यदि आप नाम जब अधिक मात्रा में नहीं करेंगे तो जो आपको नाम मिला है उसका फल आपको अनुभव में नहीं आएगा। क्यों? क्योंकि नाम का हिस्सेदारी होती है। भजन की हिस्सेदारी होती है। जैसे किसी ने प्रणाम किया वो भजन लिया। गृहस्ती को इसीलिए मना किया कि रास्ते में परिक्रमा मार्ग में हलवा पूरी ये सब बट रहा है हाथ मत फैलाओ वो दान कर रहा है सुकृत कर रहा है और कोई दूसरे ले विरक्त आदि आप अपने भूख मिटाने के लिए चार रुपया के चना ले भले पा लो लेकिन दूसरे के द्वारा दिया हुआ हलवा मत पाओ यहां धाम आए हो भगवत कमाई करने आए हो यहां नाम जप करो कष्ट सहकर परिक्रमा दो हो सके चार रुपए की वस्तु लेकर के आप पशु पक्षियों को पवा दो। किसी एक का पेट भर तुम मत पाओ दूसरे का। तुम चाहो तो उपवास कर सकते हो या प्राण पोषण के लिए रूखा सूखा थोड़ा खा। ये दूसरे के आराम से धाम में हम आए दो चार दिन खूब खाए पिए। नहीं भागीदारी हो जाएगी तुम्हारे पुण्यों की। वहां ऐसे फ्री नहीं है कुछ। भजन का भागीदार राजा भी होता है। जिसके राज्य में रह रहे हैं। जो अन्न देता है वह भजन का जो वस्त्र देता है वो भजन। इसीलिए गृहस्थ को कहीं कुछ भी स्वीकार नहीं करना चाहिए। यह बहुत ध्यान रखिए। अगर आप कहीं तीर्थ साधु आश्रम कहीं जाते हैं कोशिश कीजिए कि किसी से सेवा ना ले और अगर सेवा ले तो उसके अनुसार फिर अर्थ दे दे। अगर आपने वहां भोजन पाया पानिया तो उसके अनुसार सोच ले कि अगर हम इतना खरीदते तो कितने का मिलता वो दे दिया तो आपका भजन बच गया कभी आपको कोई प्रणाम नमस्कार करे तत्काल बराबर प्रणाम करो किसी को अपना भजन का हिस्सेदारी नहीं सबका मंगल हो यह भजन जितना बढ़ेगा तो आपको भगवदाकार कर देगा दिन रात 24 घंटे में 21600 स्वास चलती है। 21600 स्वास में छ घंटा तो सोने के चले जाते हैं। उस समय तो चेतना नहीं रहती। अब हमको अगर 21600 नाम हमको जपने को मिल जाए तो हमारी हर स्वास सार्थक हो जाए। जो हम पांच छ घंटा सोते हैं उसमें जिनका अभ्यास है तो बात अलग है नहीं तो वह व्यर्थ जाती है तो हमें एक श्वास में कई नाम जपने का अभ्यास करना चाहिए जिससे 200 माला फेरने पर ये 21600 श्वासों की गणना पूरी होती है अगर हम 200 माला का नियम ले तो इतना हो सकता है तो हमें लगता है अगर हर समय माला नहीं ले सकते हैं तो श्वास वाली माला बहुत अच्छी रहती है। श्वास में चार बार खींचो चार बार नाम लेते हुए छोड़ो। दूसरा साधन एक छोटी माला ले ले जो आजकल तो काउंटर चला है। काउंटर में ज्यादा सुविधा संसार के क्रियाओं में रहने वालों को होती कि क्या अपनी जेब में डाल लिया। तीसरा साधन वह बहुत कठिन है। मन की वृत्ति से नाम जप करना। माला श्वास और मन की वृत्ति उसमें श्वास की भी गणना का ध्यान नहीं रहता। उसमें केवल चिंतन होता है, चल रहा है। पर यह आखिरी स्थिति होती है। इसी के बाद वो परिपक्व अवस्था होता है। जिभ्या से धीरे-धीरे नाम उच्चारण करते हुए यह पहला अभ्यास है। प्रारंभिक को एकदम मानसिक में नहीं पहुंचने की चेष्टा करनी चाहिए। दो चार नाम के बाद मन प्रपंच में फंसा देगा। दूसरा अभ्यास कंठ से जैसे हम जिभ्या राधा वल्लभ श्री राधा राधा वल्लभ इसे वाचिक जप कहते हैं मंत्र नहीं होगा ऐसे नाम होगा फिर उपांश ऐसे फिर कंठ से चलता है फिर हृदय से चलने लगता है फिर नाभ से चलता है जिसका नाभि से चलने लगता है उसका परावाणी के द्वारा भजन वो सिद्ध पुरुष कहा जाता है चार वाणी पराला पश्यती मध्यमा वैखरी वैखरी जो बोल रहे हैं जो कंठ से फिर हृदय से पश्यती परा नाभि से मूलाधार केंद्र से लेकर के संपूर्ण ब्रह्मांड में इसमें नाम गूंज रहा है वो सिद्ध पुरुष का होता है पहला अभ्यास जिभ्या हिला के शुरू करें राधा राधा राधा राधा फिर कंठ से कभी हमारे सदगुरुदेव भगवान को देखना अगर कोई आ गया बातचीत का हुआ तो यहां से तत्काल चलता दिखाई देता है ना कंठ ऐसे ऐसे हिलने लगता है कंठ और शांत बैठे तो फिर नहीं दिखाई अगर कोई है आसपास तो इतनी तीव्रता लगन होती कि कहीं छूट ना जाए नाम कंठ से विशिष्ट अभ्यासी का फिर हृदय से परिपक्व अभ्यासी का और नाभि से सिद्ध महापुरुष का परावाणी से चलता है अगर एक वर्ष तक जिभ्या से अभ्यास किया जाए। यह मैंने किया है। नारायण स्वामी कहते हैं तो दूसरे वर्ष में कंठ से प्रारंभ हो जाता है। दो वर्ष कंठ से चले तो अगला हृदय से प्रारंभ हो जाता है और हृदय से तीन वर्ष चले तो फिर नाभ से सात वर्ष में नाम सिद्ध हो जाएगा। अगर नियम पूर्वक झूठ ना बोले सत्य आचरण करें ऐसे नाम जप करें। हम यह कहते हैं कि चलो थोड़ा धीमे ही सही पर 12 वर्ष में तो आपको सिद्ध हो जाना चाहिए 12 वर्ष यहां 30 वर्ष के 50 वर्ष हो गए साधन करते जो का त्यों कोई परिवर्तन नहीं इसका मतलब अंदर से नाम नहीं चलाया जा रहा नाम में रुचि नहीं 12 वर्ष में तो भगवत साक्षात्कार करके जागृत स्वप्न सुशुप्त अवस्था पर विजय प्राप्त कर लेता है साधक ऐसा ही स्वामी जी ने किया नारायण नारायण नारायण नारायण नारायण ऐसी सिद्धावस्था हो गई थी एक टाट की लंगोटी एक रस्सी कमर में बस बड़े ही उच्च कोट और बहुत बड़े अरब खरबपति घर के बालक थे सारी सिद्धियां उसके पैरों में लौटने लगती है जिसका नाभि से भजन प्रारंभ हो जाता है परावाणी से अजपा जाप उसे ही कहते हैं जो नाभि से होता है अजपा जाप करने वाले उपासक में जो अजपा करने की चाह रखते हैं। पहला भोजन पर ध्यान दें। सात्विक भोजन पवित्र भोजन भाई नाम का स्वाद नहीं मिला तो कुछ लोग जो है बहुत प्रसन्न होते हैं जब सांसारिक पदार्थ आता है। बड़ी कृपा श्री ठाकुर जी की रही है कि इस विषय पर जो है बहुत परिपक्व किया है। रोटी नहीं मिली। ये रबड़ी रसगुल्ला की तो बात जाने दो। गंगा का किनारा गांव में जाना नहीं जो आकाश वृत्ति से वह आ जाए वही आप लोगों को तो रोटी तो मिल रही है पहला नाम सिद्ध करने के लिए भोजन सात्विक और थोड़ा अगर एक समय पाकर निर्वाह कर लो तो अच्छा नहीं तो दो समय तीन समय पाने का तो अधिकार ही नहीं साधक को भगवान की बड़ी कृपा है जब भूख थी तब था नहीं और जब है तो भोजन नहीं पा सकते। वो बड़ा लीला बिहारी है। जब भूख थी तब भोजन नहीं और जब भोजन है तो नियम कानून इसके लग गए हैं। ये ये इतना इतना दूसरा पहला भोजन पर पवित्र देखो नाम जप के लिए बहुत आवश्यक है। यही जीवन है कि अगर आप नाम जप करने लगे तो हमारा बोलना हमारा जीना सार्थक हो जाएगा। अगर नाम जप आपको करना है तो पवित्र भोजन होना चाहिए। दो टाइम भोजन पाना है तो थोड़ा थोड़ाा पाओ। पेट ना भरने पाए। ऐसा ना लगने कि वजन बढ़ गया है। वजन बढ़ गया है तो भजन घट गया है। वजन घट गया है तो भजन बढ़ गया है। देखो तुम्हारे सांसारिक संबंधी माता-पिता चाहेंगे कि तुम्हारा चिकना शरीर होना चाहिए। हष्ट पुष्ट होना चाहिए। लेकिन हम चाहेंगे कि तुम्हारा भजन पुष्ट होना चाहिए। भगवदाकार वृत्त होना चाहिए। शरीर तो आज है। कल नहीं रहेगा। चाहे जितना चिकना कर लो। सांसारिक माता-पिता के प्यार में और गुरु के प्यार में यही अंतर है। वो आपके स्वरूप को पुष्ट करेगा। तो शरीर तो अपने आप मन प्रसन्न है तो वो स्वस्थ है। अस्वस्थ होने पर भी स्वस्थ है। अगर शरीर स्वस्थ है और काम वासना है। नाना प्रकार की चिंताएं ये थोड़ी माता-पिता दूर कर पाएंगे। वह तो तपस्या और साधना से ही दूर होती है। ध्यान रख लीजिए अधिक भोजन पाना शरीर को बहुत पुष्ट बलवान कर लेना तो हर इंद्रियों को भोग देना पड़ेगा आपको। वो कोई तपस्वी होता है। जो तपस्वी होता है वो संयमी होता है। जो संयमी होता है उसके चर्बी नहीं होती। ध्यान रखना। युक्त आहार विहारस प्राण पोषण के लिए केवल शरीर में अन्न जाए तब नाम में प्रीति होगी। खाते खाते अनेकों जन्म व्यतीत हो गए। वर्षों व्यतीत हो गए। अरे अब तो भजन कर लो। कहां तक खाओगे? ये नरक कुंड है। डाला विष्ठा बन गया। नींद एक नियम बना लो कि इतना ही सोना है। पता नहीं सोने में कौन सा सुख। नींद में केवल एक बात का सुख होता है। आपका संसार का चिंतन नहीं होता तो आप जो शांत रहते हैं वह सुख होता है। लेकिन वो तमोगुणी सुख है। अगर आप जागृत में संसार का चिंतन ना होने दें और भगवत चिंतन कर रहे हैं तो आप महापुरुष हो जाएंगे। सो के जीवन क्यों बर्बाद करते हैं? एक टाइम रखिए सोने का। बस ये कोई तुम्हारा सुख नहीं है। ये तमोगुणी सुख है। निद्रा आलस प्रमादोत्तम तत तामस मुदाम। और एक बात समझ लो यज्ञ विष परिणाम अमृतोम जिसमें विष जैसा शुरुआत में लगता है उसका परिणाम अमृत होता है और जिसकी शुरुआत अमृत जैसी लगती है उसका परिणाम विष होता है प्रातः कालीन उठकर के सत्संग में आना विष जैसा लगता है लेकिन उठ के आ रहे हो तो इसका फल अमृत होगा ब्रह्म मुहूर्त में सो रहे हैं जीवन बर्बाद कर रहे अरे ब्रह्म मुहूर्त में उठिए स्नान कीजिए और सच्चिदानंद भगवान मेंित को जोड़िए। यह विष जैसा लगता है। परिणाम अमृत जैसा होता है। तीसरा 24 घंटे में एक घंटे का तो एकांत वास करना सीख ही लो। चाहे गृहस्थ हो चाहे कोई भी हो। एक घंटे हमसे कोई बात नहीं करेगा। अपने दरवाजा बंद थोड़ा एक घंटे कोई ऐसा समय निकालो जिसमें चित्त को केवल श्री कृष्ण से जोड़ो। प्रियाजों से जोड़ सको। चौथा विरक्त साधक तकिया गद्दा ये सब चीजें अगर लगा के सोओगे तो नाम जप नहीं होगा। देखो हित धाम में कुशासन और एक ईंट कुशासन के नीचे सर्दी में ओढ़ने के जो हमारे कंबल थे वो आटे का बोरा बलराम जी ला के दे थे जीवन को यदि आप कसौटी पर नहीं कसेंगे तो भजन नहीं होने वाला अब तो शरीर रोग से ग्रसित है आप चाहे जहां रखो चाहे जैसे रखो प्रिया जो जाने जब तक हमें भगवदाकार वृत्ति ना हो जाए तब तक विषयों को स्वीकार नहीं ऐसे हैं साधक बड़ा सुख मिलता है एक ऐसे पड़ा हुआ है आसन उनके कमरे में जाकर देखिए केवल आसन ही है कितने ऐसे साधक राधा की कुंज में रहते हैं जिनकी चटाई केवल है ना तकिया है ना गद्दा है ना कोई उसी चटाई को ऐसे खड़ा कर दिया बिछा लिया बस उसी में पड़े भोजन मिला पा लिया ऐसे रह रहे हैं कमरे में देखो जाके तो ऐसा लगेगा कि इसमें कोई रहता ही नहीं कुछ है नहीं केवल चटाई ये तकिया गद्दा विशेष विलासिता की वस्तुएं तो नाम जप नहीं होने वाला। ध्यान रखना जहां पड़े आराम से नींद आ जाएगी सो जाएंगे और जब तो नींद उतनी आएगी जितनी आवश्यकता है। भजन का खजाना तिजोरी में रखें। कभी किसी से बताएं नहीं कि आपका भजन कितने माला कितना होता है। पूज्य नारायण स्वामी जी कह रहे हैं भजन को खजाने में रखने का मतलब है लूटने वाले डाकू माया भेजती है। काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर आदि। और प्रिय गृहस्थ भगत आदि। कैसे प्रिय ग्रह स्वामी जी अब यह सब आप ही कहा है बहुत बीमार है आप देखना ठीक है दूसरे की दुख निवृत्ति करना संत का स्वभाव होता है पर हम जिस मार्ग के पथिक है हमारा कर्तव्य है हमारे पास हमारे प्रभु के सिवा कोई नहीं हमारा जो कुछ है वो प्रभु है ए भैया जैसा श्री जी चाहेंगे वैसा मंगल करेंगे यह शब्द होना चाहिए। उससे उसका भी मंगल होगा। आपकी भक्ति पुष्ट होगी। कभी भी जो गृहस्थ में भजन करता है किसी भी तरह का किसी से भी कोई प्रतिग्रह ना ले। नहीं ले लो। ये लो बढ़िया रख लो। नहीं महाराज हमारा ये मार्किन का गमछा ही काफी है हमारे लिए। नहीं नहीं ये प्रसाद हां इतना किनका दे दीजिए। भगवत प्रसाद ये हमारे लिए पर्याप्त गृहस्ती में अगर आप भजन करते हैं तो अपने भजन को बचाने के लिए किसी से भी दान पुण्य किसी का भी बट रहा है वह स्वीकार ना करें। किसी से प्रणाम नमस्कार किसी से अपनी सुविधा सेवा स्वीकार ना करें। और जो विरक्त है उसको ध्यान रखना चाहिए कि हमारा जीवन केवल जगत मंगल के लिए विश्वेश्वर भगवान को समर्पित जीवन है। ना हम किसी को श्राप दे सकते हैं ना किसी को वरदान दे सकते हैं। सेवक स्वामी की इच्छा को देखता है। ऐसा ऐसा हां फिर प्रियाजू की जैसी इच्छा होगी वैसा नहीं आप ऐसा नहीं प्रियाजू का बस जबान से कभी ना किसी के प्रति सांप का और ना हरि राम व्यास जी ने कहा है कि साप और वरदान हमारी हमारे स्वामी की तो हमें हर बार में यही बोलना है जैसी प्रिया जी की इच्छा जैसी श्यामा जी की इच्छा नहीं आप कुछ कह दीजिए तो राधा राधा राधा नहीं कैसे मंगल होगा आशीर्वाद दीजिए राधा राधा राधा दादा बहुत संभाल के महात्माओं को इस बात में सावधान रखना चाहिए कि ये माया ममता का रूप धारण करके तुम्हारी तिजोरी को खाली कर देगी। खजाना लूटने के लिए माया बहुत अनुभवी महापुरुष है। सेवक के रूप में आती है। खास सेवक बनकर आज तक जहां दगा हुआ है तो खास से हुआ है। जब वृक्ष कटने लगे तो आपस में बात की भाई ऐसा कौन आ गया जो हमें काट सकता है। बोले हमारा कोई मिल गया। तो कुलड़ में जो भेंट है ना बोले मिल गया कोई हमारा खास बनकर के आती है माया सेवक सेविका रूप ले बहुत अनुभव की बात महापुरुषों के मान लीजिए विरक्त जनों के लिए खास बात है सेवक सेविका रूप रख के माया आएगी इसके बाद अगर आपने स्वीकार किया फिर तुम सेवक होगे वह स्वामी होगी समझ रहे हो? बहुत अंदर से इस बात को समझ लीजिए। अगर आपको भगवत प्राप्ति करनी है तो जब तक शरीर में स्वास रहे सेवा मत स्वीकार करना किसी की। कपड़ा धुलाना खाना पीना भीख मांग के खाओ भिक्षा अन्न या आकाश वृत्ति से जियो। जैसे मना ना कपड़ा धो पाओ तो उतने पहनो जितना धो पाओ। किसी को अपनी सेवा में प्रवेश मत होने दो। अपने शरीर की सेवा, अपने जीवन की सेवा जब तक स्वास है तब तक स्वयं करो नहीं तो तब लग जोगी जगत गुरु जब लग रहे निराश जब आशा मन में भाई जब गुरु और जोगी दास इसलिए होश में परमार्थ के पथिक को कभी किसी की सेवा नहीं लेनी चाहिए कभी किसी को सेवक नहीं बनाना चाहिए भगवत भाव से नेकी कर दरिया में डाल उपदेश दे दिया चल अपने मार्ग में जीवन की ये बात हमारी अनुभव की मान लीजिए अगर निर्विघ्न पंथ निर्वाह करना है तो कभी किसी को यहां सेवक ना बनाया जाए। सेवक सेविका के रूप में स्वीकार करने वाले साधु का हृदय आग की तरह जलने लगता है। जो जिंदगी भर निश्चिंत और निर्भय रहा उसे भयभीत और चिंता युक्त होना पड़ता
