भगवान जो-जो कराएं वो करो और भविष्य की चिंता छोड़ दो ! Shri Hit Premanand Ji Maharaj
इसीलिए हम कहते हैं संकल्प क्यों करते हो पता नहीं शाम तक जीवित रहे कि ना रहे | भगवान जो-जो कराएं वो करो और भविष्य की चिंता छोड़ दो ! हमें भरोसा नहीं तो हम संकल्प क्यों करें भाई | ” मैं यह करूंगा” यह संकल्प तो वह करे जिसको कल का भरोसा हो | अपने लोग तो ऐसे मृत्यु लोक में है कि अगले सेकंड का भरोसा नहीं तो ऐसी प्रार्थना करनी चाहिए कि, ” हे प्रभु यदि आपने मुझे जीवन दिया, सामर्थ्य दिया, समय दिया तो ऐसी हमारी भावना बन रही कि हम 108 परिक्रमा कर लेंगे ” , अगर नहीं समय है , नहीं शरीर सामर्थ्य रही, तो एक्को नहीं करेंगे. तो कोई अपराध नहीं लगेगा और अगर संकल्प ले लिया कि अब 108 करेंगे तो करना चाहिए |
“देखो संकल्प पूरा करना चाहिए.”
तो अभी जान तो शरीर में है ही तो संकल्प के लिए फिर उसी कार्य में लगा जाता है. पर हम सबसे प्रार्थना करते हैं संकल्प ना लिया जाए कभी कोई अगर नियम लेने की बात हो तो यह जरूर छूट दे दे कि हे प्रभु यदि हमारा स्वास्थ ठीक रहा हमारा जीवन रहा तो हम आपके ऐसा कर लेंगे और अगर नहीं रहा तो आपने कोई संकल्प किया नहीं तो पाप नहीं लगेगा |
“जैसे कोई डील करते हैं ना गोवर्धन महाराज मेरे पुत्र का नौकरी लग जाए मैं 100 परिक्रमा करूंगी”
फिर हमें लगता है करना चाहिए पर अगर साय के पधार गया तो फिर कैसे कर पाएगा मृत्यु लोक है और मरण धर्मा शरीर है |“मुझे तो भरोसा एक मिनट का नहीं अपने शरीर का कि एक मिनट ही अगला जिएगा कि नहीं जिएगा”. इसीलिए संकल्प विकल्प करने का अधिकार ही नहीं है. पता नहीं शाम तक जिएंगे ! क्यों भाई ? पक्का है किसी को पता नहीं शाम तक जिएंगे कि नहीं तो हम क्या संकल्प करें | हमें तो यही कि प्रभु जैसे चलावे वैसे चल रहे हैं | परिक्रमा करवा दिया परिक्रमा करें, बैठे-बैठे “राधा-राधा” जप रहे हैं . मांग के खा लिया. भगवान के भरोसे बाबा जी.
“ऐसे गृहस्ती में अपने धर्म कर्म किए जब समय मिला तो परिक्रमा कर लिए. अच्छा ! प्रार्थना करना स्वामी से कोई गलत बात नहीं है. ” कि हमारे बच्चे की नौकरी लग जाए, हमारा काम बन जाए, जरूर करो”
हमें भगवान् से प्रार्थना कैसे करनी चाहिए ? भगवान जो-जो कराएं वो करो और भविष्य की चिंता छोड़ दो !
भगवान से नहीं करोगे तो किससे करोगे, करना चाहिए. पर यह करके कि हमारी कामना पूर्ण कर दो हम इतना करेंगे फिर बंधन हो जाएगा . हम इतना क्यों कहे – “तुम्हारी परिक्रमा करेंगे “ हमारा काम पूर्ण हो . स्वार्थी हो क्या? आप हमारे पिता हो, हमारे स्वामी हो, हमें आपकी जरूरत है, मांग रहे हैं कि- “प्रभु हमें एक संतान दे दो”. हम आपको कुछ करेंगे | ये हममें बस नहीं हमारे पास तो जो कुछ दिया हुआ सब आपका है नाथ | स्वाभाविक 108 परिक्रमा लग जाए कोई बात नहीं संकल्प मत करो.
“मांग जरूर लो जो भी तुम्हे माँगना है और छूट दे दो कि प्रभु यदि उचित हो तो ऐसा करना अगर उचित ना हो तो प्रभु लाख बार मांगू तो भी पूरा मत करना ”
ये भक्तों की मांगे होती हैं, यह संतों की मांगे होती है, कि नाथ मेरी आवश्यकता तो है अगर आपको उचित लगे तो आप दे देना और अगर उचित ना लगे तो मेरे मांगने पर भी आप ना देना | जब यह बात बनी रहती है कि जितना नाम जप होना चाहिए उतना नहीं होता. भगवान जो-जो कराएं वो करो और भविष्य की चिंता छोड़ दो !
“यह बात तो हमारे में भी है इतनी पीड़ा तो हमको भी बनी रहती कि जितना होना चाहिए उतना नहीं होता इतनी पीड़ा हम अपने गुरुदेव भगवान में भी देखी”
एक दिन उन्होंने कहा – “क्या बताएं जीवन निकल गया छक के नाम जपने को नहीं हुआ. रात दिन मंत्र में नाम में लगे हुए रात दिन दश वर्ष समीप रहकर सेवा में रहे तो बोले क्या बताऊं पूरी जिंदगी निकल गई छक के नाम जपने को नहीं मिला.”
तो भगवत भजन करने वाले में भजन की इतनी भूख बढ़ जाती है कि रात दिन भजन करने पर भी उसको ऐसा अनुभव होता है कि जैसा होना चाहिए वैसा नहीं हो रहा है. यही सोच अखंड भजन बनाता है. पर इस अखंड भजन होते हुए भी रोना आएगा, “कि प्रभु मुझे भजन करने के रुचि दे दो . यही भजन असली भजन का फल है. भजन करते हुए भजन की इतनी भूख होना कि भगवान से भजन ही मांगना. ”
कि प्रभु अभी वह भजन नहीं होता जैसा प्रेम से होना चाहिए हर एक महात्मा को हर एक भजना नंदी को अनुभव होगा. और यह अगर हुआ तो भजन अखंड होने लगेगा. क्योंकि हम जिसकी पीड़ा महसूस करते हैं, उसको हम भूलना कैसे बर्दाश्त कर पाएंगे. तभी वह अखंड स्मृति कर पाता है. और जो संतुष्ट हो जाता है भजन में वो भजना नंदी नहीं हो पाता.
“जो भजन में असंतुष्ट और भोगों में संतुष्ट रहता है वही भजना नंदी कहा जाता है.”
अपनी बात कहते हैं, मुझे तो गुरुदेव ने संभाला नहीं तो साधन भजन हो रहा था पर वो अहंकार जनित था जब गुरुदेव ने कृपा करी तो हमारे अहंकार का चकना चूर हुआ तब ये बात समझ में आई कि गुरु कृपा से मोक्ष मूलम गुरु कृपा.
प्रियालालु को कैसे लोग प्रिय हैं? भगवान जो-जो कराएं वो करो….
गुरुदेव भगवान साक्षात करुणामय प्रियालाल के स्वरूप है. वो जब कृपा करते हैं तो अहंकार नष्ट हो जाता है और अहंकार नष्ट होते ही दैन्यता आ जाती है और प्रियालाल को दैन्यता बहुत प्रिय है. और वो दैन्यता कृपा से ही आएगी और गुरु के चरणों में आसक्त रहो. देखो हम आपको गुरु महिमा की एक बात बता दें.
जब हम कोरा कागज होकर गुरुदेव के चरणों में समर्पित होते हैं. तभी हमारी हृदय में लिखा पड़ी सही होती है. हम लोग क्या होते हैं पूरा कागज रंगे हुए पहुंचते हैं और अपनी बुद्धि लड़ाते हैं गुरुजनों पर इसीलिए हमारा काम बन नहीं पाता यदि हम बच्चा बन के गुरु के चरणों में जाए जैसा बोले वो और ऐसा करने लगे तो गुरु को भी पता नहीं चलेगा ऐ शिष्य की उन्नति हो जाएगी अध्यात्म की क्योंकि उसने उनको भगवान माना है.
देखो एक हम प्रसंग कई बार सुना चुके हैं एक उड़िया बाबा ने सुनाया था प्रसंग कि एक बंगाल के भगत के मन में आया कि मैं गुरु बनाऊं? तो एक प्रसिद्ध थे काली के उपासक उनके पास गए और मदिरा पीते थे वो जानते नहीं थे, वो मदिरा पिए हुए बैठे हुए थे उन्होंने कहा- ” गुरुदेव मैं आपको गुरु रूप से वरन करता हूं मुझे मंत्र दे दो. तो शराब के नशे में लड़खड़ाते हुए मंत्र बोले तो अशुद्ध मंत्र व अशुद्ध अवस्था पर वह सीधा सरल भक्त भगवान मान के गुरु की छवि लेके पूजा में रख के मंत्र अनुष्ठान अशुद्ध मंत्र एक साल ही हुआ कि मां भद्र काली प्रकट हो गई और कहा बेटा तेरा गुरु ढोंगी है. तो उन्होने कहा मां पहली बात तो आप गुरु को ऐसा ना बोले, गुरु हमारे परब्रह्म है आप ऐसा ना बोले बेटा, माँ ने कहा तु बहुत सरल है जानता नहीं वो शराब पीता है और जो मंत्र दिया ना वह अशुद्ध है. तो उन्होंने कहा मां अब तो और विश्वास आपकी बात पर नहीं रहा, अगर गुरु ने अशुद्ध मंत्र दिया होता तो तुम एक साल में आ गयी! कैसे आ गयी? बोलीं बताने आई हों कि मंत्र अशुद्ध है.
गुरु के प्रति हमारी कैसी निष्ठां होनी चाहिए
तो उन्होने कहा मां मैं अपने गुरु निष्ठा और गुरु मंत्र को नहीं छोड़ सकता आप जाओ. तो मां ने कहा बेटा मैं तुम्हारी गुरु भक्ति पर प्रसन्न हुई और आज से मेरे सिद्ध करने का मंत्र यही होगा. जो अशुद्ध मंत्र है. ऐसा गुरु भाव किया जाता है, गुरु को परब्रह्म साक्षात माना जाता है परब्रह्म में दोष दर्शन नहीं होते. दोष हमारी बुद्धि का है अगर बुद्धि का दोष निकाल दे तो देखो “मत्ता पर तरम नानत किंच दस्ती धनंजय” भगवान कह रहे मेरे सिवा कोई और है नहीं की हम गुरु को दोष दर्शन में देखें कहीं ना कहीं हम से त्रुटि हो रही. हमें घोर पापी में भी भगवान देखना है तो गुरु में भगवान देखने में क्या बात है ! भगवान जो-जो कराएं वो करो और भविष्य की चिंता छोड़ दो !
विचार करके देखिए, जब हम गुरु में भगवान देखते हैं तो अपना समर्पण करते हैं और जब वो हमारे साथ उल्टा व्यवहार करते हैं और हम सह जाते हैं तो हमारा अहंकार नष्ट हो जाता है. वहीं, वहीं रहकर उसको चोट पहुंचने दो अहंकार को और अहंकार जब मिटिया मेट हो गया. तब कृपा उदय हुई तब समझ में आया ओहो साक्षात परब्रह्म गुरुदेव है. “ गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुदेव महेश्वरा गुरु साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरु” गुरु में भगवान बुद्धि करना बहुत कठिन बात है सबसे कठिन बात विश्व में समझ लो गुरु में परब्रह्म बुद्धि करना और गुरु में परब्रह्म बुद्धि नहीं तो कुछ भी कर ले अहंकार नष्ट नहीं होगा.
यह खुली बात कह रहे “गुरु ही एक वो खिलाड़ी है जो हमारे अहंकार को मिटिया मेट कर दे सकते हैं. दूसरा नहीं-2,” इसीलिए –“ध्यान मूलम गुरु मूर्ति पूजा मूलम गुरु पदम मंत्र मूलम गुरु वाक्य मोक्ष मूलम ” गुरु का चरणामृतपियो, गुरु के चरण रज लगाओ, गुरु के आगे एक तुच्छ सेवक की तरह रहो, अभी दैन्यता आ जाएगी अगर गुरु में दोष दर्शन होने लगे तो हट जाना चाहिए और दूर से उनको परब्रह्म मान के बिना निंदा किए उनके द्वारा बताई हुई उपासना में रथ हो जाए तो उसका परम कल्याण हो जाएगा दूसरा गुरु बनाने की जरूरत नहीं है
परमत्मा की प्राप्ति कैसे होगी
परमात्मा प्राप्ति के लिए गुरु कृपा है. हम तो आपको हाथ उठाकर कहते हैं कि गुरुदेव की कृपा के बिना एक कदम नहीं चल सकते. एक कदम भी नहीं चल सकते, हम जैसे भूमि में ही कदम रख सकते हैं, ऐसे हम जीवित है परमार्थ में चल रहे हैं तो केवल अपने गुरुदेव की कृपा से चल रहे हैं किंचन मात्र कुछ नहीं केवल वो ऐसे पकड़े हुए हैं तो हम चल रहे हैं अगर व ऐसे छोड़ दे तो धम में से गिर जाए. गुरु कृपा ही केवलम गुरु कृपा है वो दैन्य होता गुरु कृपा से आती महाराज जी धन्य भाग है. आपकी कि आप दैन्य चाहते हैं, हां परम कृपा है वैष्णव आचार्यों की बस चुपचाप चलते रहि किसी की निंदा मत करना और किसी के दोष दर्शन मत करना.
बस इसी से दैन्य होता आ जाएगी और दैन्य होता में रोना आता है. जैसे अब आपका दनता में रोना आता है कि मुझ जैसे अधम पर इतनी कृपा श्री कृष्ण की महाप्रभु की गुरु की तो वो हृदय निर्मल होता चला जाता है. जब रुदन होता है ना प्रभु के उसमें इससे ज्यादा और किसी तीर्थ में नहीं पवित्रता है. जितनी रुदन में पवित्रता है. हां “रुदु सु शरम राजन कृष्ण दर्शन लालसा”. जब अपने प्यारे प्रभु के लिए रोना आता है तो हृदय निर्मल तार तार निर्मल हो जाता है.
और कबीर दास जी कहते हैं कि “बिन रोए किन पाइया प्रेम प्यारा मित कबीरा हसना छोड़ दे रोने से कर प्रीत. बिन रोए किन पाइया प्रेम पयारा मित” पर भगवान की तीन प्रकार की लीला है एक है सृजन और एक है पालन और एक है संघार और तीनों लीलाएं पक्का होंगी जैसे सृजन जरूरी है, पालन जरूरी है . ऐसे विनाश भी जरूरी है, देखो इस शरीर को कहा गया विनाशी और इस लोक को कहा गया मृत्यु लोक. भाई देखो जो जन्मा है उसका शरीर छूटेगा. जो हमने कर्म किए उसके अनुसार हमें भोग मिलेंगे. अब हम भगवान से भजन के बल से उनके प्रार्थना के बल से हमको क्षमा याचना करवा सकते हैं. तो अपने पुत्र के लिए अपने कल्याण के लिए अपने परिवार के कल्याण के लिए समाज के मंगल के लिए भगवान का नाम जप करें.
भगवान से प्रार्थना करें दूसरों को सुख पहुंचाए धर्म पूर्वक आचरण करें तो निश्चित मंगल होता है. हां बहुत अच्छा है देखो यशोदा मैया स्वयं भगवान लाला के रूप में आए ला तो गौ की पूछ से झाड़ला और ब्राह्मणों को बुलाकर स्वस्थ वाचन कराना दान देना. मेरा लाला कन्हैया सुरक्षित रहे क्योंकि बड़े-बड़े आक्रमण हुए ना पूतना है तणाव त अघासुर बकासुर मैया घबरा जाती थी. कि दुनिया की बलाए हमारे लाले के पीछे काहे पड़ी और अच्छा मां को अपने पुत्र का महान स्वरूप दिखाने पर भी दिखता नहीं क्योंकि मां है ना उनको लगता है मेरा लाला है तो बार-बार वो परेशान हो जाती थी. और स्वयं भगवान की रक्षा के लिए भगवान के नाम का प्रयोग किया. केशव भगवान बाजुओ की रक्षा करें ऐसे करे, ऐसे तो हमें लगता है भगवान का नाम जप और धर्माचक्र सुरक्षित रहे. मेरे पुत्र की की बुद्धि शुद्ध हो, मेरे पुत्र को कभी विपत्ति ना हो, तो देखो मां में बहुत बड़ी सामर्थ्य है, अगर मां तपस्या पूर्वक अपने पुत्र को चाहे तो अजर, अमर बना सकती है. मंल सा माने यही कहा था मेरे गर्भ में जो जीव आएगा उसे भगवान से मिलाकर रखूंगी उसे भगवत प्राप्ति और ऐसा ही किया देखो गांधारी जी ने भी सुना कि धृतराष्ट्र हमारे पति होने वाले वो अंधे हैं तो पट्टी बांध ली.
गांधारी ने युद्ध के समय अपनी ममता कैसे दिखाई
जब यह समय आया कि अब युद्ध होगा ही पक्का तब गांधारी जी ने कहा बेटा मैं तुम्हें बहुत प्यार करती हूं.तू मेरा बेटा है पर भीम के सहयोगी श्री कृष्ण तू मारा जाएगा. इसलिए जा तु नगन होकर मेरे सामने आजा मैं पट्टी खोलती हूं, तेरा शरीर बज्र का हो जाएगा. मृत्यु ही नहीं होगी तेरी, अब भगवान तो भगवान ही है अब वो आ रहे थे नंग धड़ंग दुर्योधन तो भगवान ने देखा उका अरे यार तुम इतने बड़े होकर बच्चों की तरह नंगे घूम रहे हो. उन्होंने के कहा माँ के सामने बच्चे हो कम से कम कमर तो ढक लो, इतना व ऐसे पत्ता लगा के से गांधारी ने जही आंख खोले ऐसे दे उ कहाय पत्ता क्यों लगा लिया. उन्होंने कहा मां तुम्हारे सामने नंगा कैसे आऊ अरे उनका धोखा कर दिया तूने अब जितनी दृष्टि मेरी पड़ गई तेरा शरीर बज का हो गया. गधा या किसी वि प्रार से नष्ट नहीं होगा लेकिन तू कमर से मारा जाएगा. यहीं से कमजोर हो गया. क्यों और भगवान अपने भक्त का प्रण पूरा करवाने के लिए जब द्रोपदी को दिगंबर करा रहा था ना ये सभा में लाओ जंगा ठोक रहा था तो भीम ने यही प्रण किया था.
इसी जंगा को तोडूंगा अगर भगवान भक्त की वचन रक्षा ना करते और वो पूरा वज्र का शरीर हो जाता तो तोड़ नहीं पाते इसलिए भगवान ने तो माग में कितनी सामर्थ्य है आप देखो अधर्म युक्त चल रहा है. लेकिन मेरा बच्चा सुरक्षित रहे आंख की पट्टी खोली पतिव्रता तो बज्र का शरीर कर दिया तो आप अपने पुत्र को अजर अमर अविनाशी बना सकते हैं. साधना और भजन के प्रभाव से नाम से परम गति होती है राधा नाम का एक हमने पद सुनाया था. अगर सत्संगी जन होंगे रोज सत्संग सुनते होंगे सुनो राधा नाम है जीवन हमारा राधा नाम प्राण आधार है. ये पूरा पद राधा नाम ही हमें प्रेम में निकुंज में पहुंचाएगा. आखिरी पंक्ति है निकुंज तक पहुंचा देगा य राधा नाम तुम्हे चिंता नहीं करनी राधा वल्लभ श्री हरिवंश जपो या राधा राधा जपो.